हमारे समाज में आज अंग्रेजी का एक हौवा सा उड़ता जा रहा है। सबको लगता है कि आने वाले समय में अंग्रेजी ही राज करने वाली है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है। हिंसी भाषा सदियों से चलती आई है और इसका खतम होना सोच से भी परे है। ये हमारी भी जिम्मेवारी बनती है कि इस भाषा को जितना हो सके प्रयोग में लाये और इसका सम्मान करें। यही उद्देश्य है इन कविताओं की रचना का। तो आइये पढ़ते हैं बच्चों के लिए सीखने और आनंद लेने के लिए हिंदी में एक छोटी कविता :-
सुबह
सूरज की किरणें आती हैं,
सारी कलियां खिल जाती हैं,
अंधकार सब खो जाता है,
सब जग सुंदर हो जाता है।
चिड़ियां गाती हैं मिलजुल कर,
बहते हैं उनके मीठे स्वर,
ठंडी-ठंडी हवा सुहानी,
चलती है जैसी मस्तानी।
बिल्ली को जुकाम
बिल्ली बोली – बड़ी जोर का
मुझको हुआ जुकाम,
चूहे चाचा, चूरन दे दो
जल्दी हो आराम!
चूहा बोला – बतलाता हूँ
एक दवा बेजोड़,
अब आगे से चूहे खाना
बिल्कुल ही दो छोड़!
अगर पेड़ भी चलते होते
अगर पेड़ भी चलते होते,
कितने मजे हमारे होते,
बांध तने में उसके रस्सी,
चाहे जहाँ कहीं ले जाते।
जहाँ कहीं भी धूप सताती,
उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती,
उसके नीचे हम छिप जाते।
लगती भूख यदि अचानक,
तोड मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड-बाढ क़हीं तो,
झट उसके उपर चढ जाते।अगर पेड़ भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते!
कितनी नावों में कितनी बार
कितनी नावों में कितनी बार
पता नहीं जन्म से
मृत्यु तक
कितनी नावों में कितनी बार
सफर करता है मानव
आदि नावों में
बार-बार चढ़ता है
राज तो यही है एक मात्र
भव ( संसार ) को सागर मानने का
वरण स्पष्ट नहीं होने हो
कितनी नावों में कितनी बार
वह सफर करता रहता है
क्योंकि यह पहेली……
पहेली को भी पहेली सम ( जैसी ) दिखती है.
हिंदी भाषा प्यारी है
सब को जो जोड़ कर रखती
हिंदी भाषा प्यारी है।अलग-अलग हैं धर्म यहाँ
हैं अलग-अलग कई भाषाएँ
आपस में बातें करने को
फिर भी सब हिंदी अपनाएं,
बहुत सभ्य यह भाषा है
लगती भी संस्कारी है
सब को जो जोड़ कर रखती
हिंदी भाषा प्यारी है।
कवि का निंद्रा से संघर्ष
सब सो गये हैं
पर कहाँ मैं सोया हूँ
सब सो गये हैं
कल उठने के लिए
पर मैं जगा हुआ हूँ
जीवन में ऊपर उठने के लिए
सब थक कर सो गए हैं
पर मैं थकने के बाद भी जगा हुआ हूँ
जीवन के भर के लिए, क्योंकि कवि हूँ मैं
सब अच्छे है उन्हें अपनी मंज़िल पता है (जीवन भर के लिए सोना)
पर मैं एक इमारत बनाना चाहता हूँ मौत की गोद में सोने से पहले.
आए बादल
आसमान पर छाए बादल,
बारिश लेकर आए बादल।
गड़-गड़, गड़-गड़ की धुन में,
ढोल-नगाड़े बजाए बादल।
बिजली चमके चम-चम, चम-चम,
छम-छम नाच दिखाए बादल।
चले हवाएँ सन-सन, सन-सन,
मधुर गीत सुनाए बादल।
बूंदें टपके टप-टप, टप-टप,
झमाझम जल बरसाए बादल।
झरने बोले कल-कल, कल-कल,
इनमें बहते जाए बादल।
चेहरे लगे हंसने-मुस्कुराने,
इतनी खुशियां लाए बादल
पश्चाताप
हम पशु न रहे
न मानव हीं रहे
जब से हम भी
बिकने लगे
आत्मबंधन के नाम पर
प्राण प्रतिष्ठा जैसे लूटते हैं
दहेज के दाँव पर.
पर्वत कहता
पर्वत कहता
शीश उठाकर
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है
लहराकर
मन में गहराई लाओ।समझ रहे हो
क्या कहती है
उठ-उठ गिर गिर तरल तरंग।
भर लो, भर लो
अपने मन में
मीठी-मीठी मृदुल उमंग।
धरती कहती
धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार।
नभ कहता है
फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार।